कहा जाता है की राजस्थान के इतिहास का सबसे समर्द्ध शहर बीकानेर हजार हवेलियो का शहर है, यहाँ हर ईंट की अपनी अलग कहानी है| ये हजार हवेलियाँ रियासत काल से ही उद्योगपतियों की संपन्नता की निशानी रही है मगर पिछले कुछ दशको से ये सुनसान पड़ी है| इस बार नए साल के दिन मुझे मौका मिल गया स्थापत्य और रंगों की अनूठी दुनिया देखने का और इन हजार में से एक हवेली घुमने का जिसे स्थानीय लोग बीकानेर की रामपुरिया हवेली कहते है |
रामपुरिया हवेली पुराने बीकानेर की पतली गलियों में स्तिथ एक खुबसूरत हवेली है जो लघभग सौ साल पहले लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई थी और उस समय के सबसे अमीर उद्योगपतियों में से एक रहे रामपुरिया परिवार का निवास स्थान थी| आज के दिन जब हम इन शांत हवेलियो के पास से गुजरते है तो एक प्राचीन यूरोपियन शहर का अनुभव होता है, जहाँ एक तरफ ये हवेली अपनी खूबसूरती से आपका मन खुश कर देती है वहीँ दूसरी और कुछ दशको से हो रहा इनका पतन आपको दुखी कर देगा|

बीकानेर की हवेलियों का इतिहास
बीकानेर में लघभग हजार हवेली है और इनमे से सबसे पुरानी हवेली 400 साल पुरानी है, जो नहीं जानते उन्हें बता दू भारतीय उपमहाद्वीप में हवेली शहर के पारंपरिक भवन को कहते है जो वास्तुशिल्प और एतिहासिक दर्ष्टि से महत्वपूर्ण होते है | बीकानेर में ज्यादातर हवेली बीकानेर रियासत के महाराजाओ ने बीकानेर में व्यापार करने वाले व्यापारियों को बना के दी थी ताकि वे बीकानेर को अपना निवास स्थान बनाके यहाँ व्यापार अच्छे से कर सके| ये बीकानेर के विकास के लिए एक समझदारी भरा फैसला था , रामपुरिया हवेली का निर्माण भी साल 1925 में महाराजा गंगा सिंह के आदेश से हुआ था |
मगर दुःख की बात ये रही के रामपुरिया हवेली के निर्माण के कुछ साल बाद भारत आज़ाद हो गया और बीकानेर की रियासत को हटा कर उसे नये राज्य राजस्थान का एक जिला बना दिया गया| सरकार के नियंत्रण में आने के बाद बीकानेर में ज्यादातर व्यापार ख़तम हो गया और सारे व्यापरी बीकानेर छोड देश के अन्य राज्यों में पलायन कर गये| आज भी भारत के सूरत और कलकत्ता में बीकानेर के कई परिवार अपना पुस्तैनी व्यापार चला रहे है| व्यापारियों के पलायन के बाद ये हवेलिया सुनसान हो गई और धीरे धीरे इनका पतन शुरू गया|
रामपुरिया हवेली बीकानेर
रामपुरिया हवेली के बारे में कई कहानिया प्रचलित है, अब सच क्या है ये जान ने के लिए मुझे वहां कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला बस एक कहानी मिली जो वहां बैठे बुजुर्ग गार्ड ने सुनाई| साल 1920 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह गंग नहर का निर्माण करवा रहे थे ताकि उनकी रियासत की प्रजा को खेती के लिए पानी मिल सके , इस नहर के निर्माण में काफी धन खर्च हुआ तो महाराजा ने भंवर लाल रामपुरिया नाम के एक अमीर उद्योगपति से एक बड़ी रकम कर्ज में मांगी औए बदले में उन्हें हवेली दी | साल 1925 तक ये हवेली बनकर तैयार हुई, हवेली का नाम यहाँ रहने वाले रामपुरिया परिवार की वजह से ही पड़ा बाकी इसका असल नाम कुछ और ही था जिसे मै जान नहीं पाया|
रामपुरिया हवेली की मेरी यात्रा


हवेली देखने जाने का सबसे बढ़िया समय है सुबह जल्दी , क्यूंकि उस समय इस इलाके की तंग गलिया खाली रहती है और आप अच्छे से हवेली की तस्वीर ले पाते है| हम लोग जब हवेली देखने पहुंचे तो शाम हो चुकी थी और उस समय सूरज की उतरती किरणों ने हवेली का रंग ही बदल दिया था| गली में पहला कदम रखते ही आभास हुआ के हम प्राचीन यूरोप के किसी शहर में है, हवेली की दीवारों पर अंग्रेजी वास्तुकला के साथ भारतीय कला का मिश्रण साफ़ नजर आता है|
हम लोग जिस सड़क से इस खुबसूरत लाल हवेली तक आये वो सीधी दर्जियो की छोटी गुवाड तक जाती है और काफी व्यस्त भी रहती है| मै आपको सलाह दूंगा की कोटा गेट से हवेली तक पैदल जाए और सुबह जल्दी जाएँ ताकि अच्छे से इनकी खूबसूरती कैमरे में कैद कर सकें| रामपुरिया हवेली की वास्तुकला की बात करे तो भारतीय शैली में बने छज्जे अग्र भाग की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाते है, पत्थर पर लयदार जाली का आभास कराती पतली नक्काशी पहले मध्य एशिया की कलाकृति की देन थी मगर आज के दिन में ये भारतीय वास्तुकला का हिस्सा बन गई है|
हवेली में लगी रंगीन कांच, प्रतिमाए और मेहराब यूरोपियन शैली का जीता जागता उदाहरण है| हवेली के प्रवेश द्वार पर हिन्दू देवताओ के चित्र और प्रतिमाए लगी है जबकि बाहरी दीवारों पर कुछ फिरंगी हस्तियों के चित्र बने है जिनमे से एक चित्र किंग जॉर्ज का भी है हवेली के आसपास कुछ छोटी हवेलिया भी है जिनमे आज भी कुछ व्यापरियों के परिवार रहते है , मैंने पीने के लिए पानी मांगने के बहाने वास्तुकला की जानकारी उनसे ली | मैंने हवेली के आसपास घूमने में एक घंटा लगाया आप चाहे तो 15 मिनट में भी ये दौरा कर सकते है मगर उसमे हवेली के बारे में अच्छे से नहीं जान पायेंगे क्यूंकि चारो तरफ घूमकर देखने से ही इसके इतिहास के कई राज मालुम पड़ते है|

घूमने हेतु अन्य सुझाव
- हवेली की दीवारों पर बनी चित्रकारी जरुर देखे
- हवेली को देखने का कोई शुल्क नहीं लगता ना ही किसी को दे
- इलाका काफी व्यस्त है इसलिए पैदल ही जाएँ या दो पहिया वाहन लेकर जाएँ
- हवेलियों को घूमने के लिए तांगा भी ले सकते है मगर उस से आप जल्दबाजी में अच्छे से हवेली नहीं देख पायेंगे
- कोशिश करे की किसी एक हवेली में अंदर जा कर घूम सके
- बीकानेर की रामपुरिया हवेली के अलावा भी कई अन्य हवेली प्रसिद्ध है जिनमे से कुछ है सोपानी हवेली और कोठारी हवेली
- अंतिम और आखरी सलाह , अगर 2 घंटे का समय है तो ही जाए अन्यथा जल्दी में घूमना ना घूमने जैसा ही है
कैसे पहुंचे रामपुरिया हवेली
बीकानेर के रेलवे स्टेशन से हवेली 2 किलोमीटर दूर है, स्टेशन से कुछ मीटर दूर मौजूद कोट गेट के पास सार्दुल हाई स्कूल के आगे से बायीं और नए कुँए से कोतवाली के पास से एक छोटी और पक्की सड़क दर्जियो के गुवाड तक जाती है और इस सड़क पर कुछ दूर चलने के बाद दूर से ही ये रामपुरिया हवेली नजर आ जाती है| इसके अलावा स्टेशन से ऑटो द्वारा भी हवेली तक जाया जा सकता है जिसका किराया है 20 रुपए | बीकानेर शहर रेल और सड़क मार्ग से देश के सभी शहरो से जुड़ा है अत: बीकानेर तक हर समय आसानी से आया जा सकता है|
निचे आपकी सावधानी के लिए रामपुरिया हवेली तक का मैप है
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